monikaprince

Header Ads

क्या जानोगे इस शहर की बात .....













क्या जानोगे इस शहर की बात
कभी हुआ करती थीं यहां हरियाली
खेत-खलियानों चौराहों पर हुआ करती थी अटहाली
कभी खिला करती थी हर आंगन में किलकारियां
क्या जानोगे इस शहर की बात
मिट्टी के कण-कण के खतिर मिट गए सुपुत्र
घर-आंगन सुना पड़ा पर मन हरियाली था
दे गए कुर्बानी आमन चैन के वास्ते
क्या जानोगे इस शहर की बात
किसानों ने बीजा वह बीज जो
दे गया हरित क्रांति का युग
लख-लख दुआएं देते हैं वे लोग
जिनकी तकदीरें लिखी इस शहर में
क्या जानोगे इस शहर की बात
कभी सात नदियां बहां करती थी  साथ
सुफी संतों कबीरों का था जमवारा
बैशाखी पर किया करती थी मुटयारी संगम
ढोल के ताप पर डाला करते थे मुंडे भगड़ा
जश्न आजादी पर हुआ करती थी गलियों में रौनक
क्या जानोगे इस शहर की बात

Post a Comment

0 Comments