और जिंदगी की जंग हार गई वो
न जाने वह कौन थी
न अपना थी न पराया थी
फिर भी दिल में बस्ती थी
न देखा था उसे न जानते थे उसको
हर घर, हर आंगन में थी उसकी जिक्र
खुले आसमान में जिंदगी जीने की चाहत लिए
वह चली गई पर एक स्याह छोड़ गई
अब नहीं बदलेगा तो कब बदलेगा
यह पुकार है उसकी
उसकी कुर्बानी की कहानी
वो चली गई यादों में बस कर
न जाने वह कौन थी
न अपना थी न पराया थी
फिर भी दिल में बस्ती थी
न देखा था उसे न जानते थे उसको
हर घर, हर आंगन में थी उसकी जिक्र
खुले आसमान में जिंदगी जीने की चाहत लिए
वह चली गई पर एक स्याह छोड़ गई
अब नहीं बदलेगा तो कब बदलेगा
यह पुकार है उसकी
उसकी कुर्बानी की कहानी
वो चली गई यादों में बस कर
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