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बिठूर का एतिहासिक और पौराणिक इतिहास




बिठूर उत्तर प्रदेश के कानपुर से 22 किमी. दूर स्थित एक छोटा सा स्थान है। गंगा किनार बसे बिठूर का उल्लेख प्राचीन भारत के इतिहास में मिलता है। अनेक कथाएं और घटनाएं यहां से जुड़ी हैं। इसी स्थान पर भगवान राम ने सीता का त्याग किया था और यहीं संत वाल्मीकि ने तपस्या करने के बाद पौराणिक ग्रंथ रामायण की रचना की थी। 1857 के संग्राम के केंद्र के रूप में भी बिठूर को जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा नदी के किनार लगने वाला कार्तिक अथवा कतकी मेला पूर भारतवर्ष के लोगों का ध्यान खींचता है। बिठूर के विषय में कहा जाता है कि ब्रह्मा ने वहीं पर सृष्टि रचना की थी और सृष्टि रचना के पश्चात अश्वमेध यज्ञ किया था उस यज्ञ के स्मारक स्वरूप उन्होंने घोड़े की एक नाल वहां स्थापित की थी, जो ब्रह्मावर्त घाट के ऊपर अभी तक विद्यमान है। 1818 में तृतीय मराठा युद्ध में हारने के बाद अंग्रेजों से पेंशन लेकर बाजीराव ने बिठूर में रहने का निर्णय किया था। पेशवा के आगमन से वहां के इतिहास में जो नवीन अध्याय प्रारंभ हुआ। बिठूर उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे स्थित छोटा सा कस्बा है जो किसी जमाने में सत्ता का केंद्र हुआ करता था। बिठूर नानाराव और तात्या टोपे जैसे लोगों की धरती रही है। टोपे परिवार की एक शाखा आज भी बैरकपुर में है और यहीं झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का बचपन बीता। बिठूर 52 घाटों की नगरी के नाम प्रसिद्ध है, लेकिन वर्तमान में वहां 29 घाट मौजूद है।

दर्शनीय स्थल

वाल्मीकि आश्रम- हिन्दुओं के लिए इस पवित्र आश्रम का बहुत महत्व है। यही वह स्थान है जहां रामायण की रचना की गई थी। संत वाल्मीकि इसी आश्रम में रहते थे। राम ने जब सीता का त्याग किया तो वह भी यहीं रहने लगीं थीं। इसी आश्रम में सीता ने लव-कुश नामक दो पुत्रों को जन्म दिया। यह आश्रम थोड़ी ऊंचाई पर बना है, जहां पहुंचने के लिए सीढिय़ां बनी हुई हैं। इन सीढिय़ों को स्वर्ग जाने की सीढ़ी कहा जाता है। आश्रम से बिठूर का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है।

ब्रह्मावर्त घाट-इसे बिठूर का सबसे पवित्रतम घाट माना जाता है। भगवान ब्रह्मा के अनुयायी गंगा नदी में स्नान करने बाद खडाऊ पहनकर यहां उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने यहां एक शिवलिंग स्थापित किया था, जिसे ब्रह्मेश्?वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

पाथर घाट-यह घाट लाल पत्थरों से बना है। अनोखी निर्माण कला के प्रतीक इस घाट की नींव अवध के मंत्री टिकैत राय ने डाली थी। घाट के निकट ही एक विशाल शिव मंदिर है, जहां कसौटी पत्थर से बना शिवलिंग स्थापित है।

 ध्रुव टीला-रुव टीला वह स्थान है, जहां बालक ध्रुव ने एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की थी। ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे एक दैवीय तारे के रूप में सदैव चमकने का वरदान दिया था। इन धार्मिक स्थानों के अलावा भी बिठूर में राम जानकी मंदिर, लव-कुश मंदिर, हरीधाम आश्रम और नाना साहब स्मारक अन्य दर्शनीय स्थल हैं।

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