यूं तो छठ पूजा की बात की जाय तो आज छठ पूजा परिचय का मोहताज नहीं है। आज सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से छठ पूजा ने पूरे भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में अपनी पहचान बना ली है। दूसरे छठ पूजा मूल रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बंगाल के कुछ भाग में और नेपाल के इलाके में मनाया जाता है। छठ पूजा की विश्व व्यापी पहचान छठ व्रत करने वालों की असीम आस्था प्रमुख कारण है। छठ पूजा एक आउट डोर पूजा है और बहुत विधि विधान से किया जाता है। इस पूजा को मनाने के लिए लोग अपने रिश्तेदारों तथा निकट मित्रों को भी पूजा में सम्मिलित होने एवं प्रसाद ग्रहण करने हेतु आमंत्रित करते हैं। छठ मनाने वाले पूरे भारत में हीं नहीं बल्कि विश्व में फैले हुए है। अब छठ पर्व आने पर या तो वे छठ पूजा का आयोजन वहीं पर करते हैं या सामान्य परिस्थिति में हो तो छुट्टी लेकर अपने गृह स्थान पर आ जाते हैं। दोनों ही परिस्थितियों में समाज को ये मैंसेज जाता है कि छठ पर्व मनाने हेतु लोग इस पर्व के प्रति कितने निष्ठावान है और ये फैक्टर छठ पर्व के प्रचार-प्रसार का सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। यदि हम छठ पर्व को समर्पित आलेखों का अध्ययन करे तो मूलत: इस पर्व के महत्व, इसका इतिहास और वैज्ञानिक पहलुओं पर केंद्रित होता है। इस आलेख में हमने छठ पर्व के एक अनछूए पहलू को टटोलने की कोशिश करेंगे। छठ पर्व में जरूरत आने वाले साजो-सामान एवं इसका समाज के विभिन्न वर्गों से संबंध पर हम प्रकाश डालने की कोशिश करेंगे।
छठ पूजा में जरूरत आने वाले कुछ प्रमुख सामान निम्न है:-बांस की दो तीन बड़ी टोकरी (दउरा)
बांस या पीतल के बने सूप (कलसूप)
लोटा पीतल (फूलहा), थाली पीतल, ग्लास पीतल
नए वस्त्र- साड़ी, धोती, चादर दउरा बांधन हेतु, चावल साठी का, लाल सिंदूर, धूप, दीपक, कलश, ढक्क्न, मिटटी के हाथी, दीये,
आम की लकड़ी, मिटटी के चूल्हे
प्रसाद बनाने हेतु --गेंहू का आटा, गुड़, देशी घी, पान का पत्ता, आरती के लिए कपूर, सुपारी (कसैली)
प्रसाद हेतु फल --पानी वाला नारियल, सेव, केला, संतरा, पत्ते वाले गन्ने, बेरा सेरुखी, सुथनी,शकरकंदी, नींबू, बड़ा नींबू (गागल),
सिघाड़ा, शरीफा, अनानास, लौकी, बोड़ो , पत्ते वाले हल्दी एवं अदरक, चना, अरता का पत्ता आदि।
पकवान-- देशी घी की तली पूरियां, ठेकुआ, खजूर आदि।
ये पूजा सामग्री पूर्ण नहीं भी हो सकती है। क्योंकि छठ पर्व में काम आने वाली सामग्री को आप कितनी भी एकग्रता से तैयारी कर
एकत्रित कर लें आपको एक दूसरे व्रती से सहयोग लेना और देना ही पड़ता है।
छठ पर्व में काम आने वाले सामग्रीयों को यदि हम ध्यान से देखें तो पाएंगे कि इसमें समाज के हर वर्ग की जरूरत आपको पड़ेगी। यानि ये पर्व आपको साल में एक बार आवश्य समरसता का पाठ सिखाता है। इसमें हम एक समाज से बांस की टोकड़ी, सूप तो दूसरे वर्ग से मिट्टी के बर्त्तन लेते हैं। वहीं किसान अपने रोपे गए नए फसल धान के साठ दिन का चावल तैयार करता है। गन्ने की फसल लगभग तैयार हो जाती है। अत: गन्ने भी पत्ते सहित पूजा में उपयोग किया जाता है। वहीं विलुप्त हो चुके सेरुखी, सुथनी व अन्य सब्जियों सिर्फ अब छठ पर्व के लिए ही उगाई जाती है और हमारी आने वाली पीढ़ी आज भी दन विलुप्त सब्जियों से वाकिफ है। गागल का फल (बड़ा नींबू) आज आम प्रचलन से बाहर है , परन्तु छठ पूजा में हर घर में आवश्यक है।
दूसरी ओर जब हम छठ पूजा हेतु संध्या अर्ध्य और प्रात: अर्ध्य के लिए नदी किनारे जाते हैं तो ऐसे उपेक्षित पड़े जगहों की सफाई करते या कराते हैं। जो सामग्री ले जाना होता है जो कि या तो सर पर रखकर या काहार (जो शदियों में डोली ले जाते थे ) ले जाता है। कहार पूजन सामग्री को बहंगी में ले जाता है जिसमें एक डंडा होता है जिसके आगे और पीछे दो रस्सी बंधा होता है और पूजा सामग्री से भरा दउरा (टोकरी) दोनों ओर रखा जाता है। इस प्रकार छठ पर्व में प्राचीन काल से विभिन्न पूजा सामग्रीयों एवं सेवाओं के उपलब्ध कराकर हर वर्ग के लोग धन अर्जित करते हैं और समाज में उनकी उपस्थिति महत्वपूर्ण बनी रहती है। छोटे बड़े सभी किसान अनाज एवं सब्जी आपूर्ति कर, विशेष वर्ग द्वारा बांस का दउरा, सूप या डलिया, कुम्हार मिट्टी के दिये, बत्तर्न इत्यादि सभी धन उपार्जित करते हैं और हमारा सामाजिक अन्योनाश्रय कारणों से छठ पर्व महान पर्व है।
छठ पर्व की पूजा विधि (संक्षिप्त ) :-
छठ पर्व की पूजा विधि को कलमबद्ध करना आसान नहीं है फिर भी एक कोशिश के तहत प्रस्तुत है। छठ पर्व दिवाली के छठे दिन होता है अर्थात कार्तिक (अश्विन ) माह के छठे दिन। कार्ति माह के चौथे दिन नहाए-खाए होता है। इस दिन व्रती (महिलाएं या पुरुष) विधिपूर्वक स्नान ध्यान कर देशी घी में बने (बिना लहसून प्याज के ) भोजन करते हैं। दिन में चावल, दाल और लौकी की सब्जी खाते हैं एवं रात्रि में गेंहू की रोटी और लौकी की सब्जी खाते हैं। दूसरे दिन सूर्योदय के साथ ही व्रत शुरू हो जाता है और व्रती इसी दिन व्रत में काम आने वाली वस्तुओं की तैयारी करते हैं। पूजा में काम आने वाले आटे हेतु गेहूं धोया जाता है, सुखाया जाता है। फिर शाम में इसे साफ सूथरे आटा चक्की में पिसाया जाता है। इस दिन आटा चक्की वाले भी अपनी आटा चक्की को धोकर साफ करते हैं और रोजमर्रा वाले कार्य आटा चक्की में नहीं होता सिर्फ व्रत वाला गेहूं ही पिसा जाता है। पुन: शाम में व्रती व्यक्ति ही पूजा हुतु प्रसाद बनाता है जिसमें रसीयाव (बिना दूध का खीर, 60 दिन के धान से निकले चावल का गुड़ में) और देशी घी लगे रोती और फल आदि होते हैं। इसके बाद पूजा होता है फिर व्रती प्रसाद खाते हैं और बाकी घर के सदस्य एवं आस पड़ोस के मित्रगण भी प्रसाद खाते हैं। इसी दिन व्रती जमीन पर ही सोते हैं। तीसरे दिन सुबह से ही घर के सभी सदस्य अपने अपने कार्यों में लग जाते हैं। कोई छठ घाट पर साफ सफाई के लिए जाता है, कोई गन्ना लेने जाता है तो कोई फल मूल सामग्री खरीददारी करने जाता है। घर की महिलाएं सुबह से ही प्रसाद (ठेकुआ, खजुर, पुड़ी) बनाने में लग जाती है। घर का पूरा महौल त्योहारमय हो जाता है और देखते ही देखते छठ घाट जाने का समय हो जाता है। घर के सभी सदस्य एक साथ छठ घाट को जाते हैं और डूबते सूर्य को नदी में खड़े होकर सभी अर्ध्य देते हैं। रात्रि में भी पूजा होती है। चौथे दिन सूर्योदय के समय सभी सदस्य दोबारा उगते सूर्य को अर्ध्य देते हैं और एक दूसरे को प्रसाद बांट कर छठ पर्व को संपूर्ण करते हैं। ये पूरी पूजा विधि चार दिनों की होती है जिसे व्याख्या करना संभव नहीं है। हर व्यक्ति को जीवन में कम से कम एक बार पर्व को नजदिक से देखना व समझना चाहिए और इसमें निहित असीम शक्ति को महसूस करनी चाहिए।
सूर्य उपासना का महापर्व है छठ पूजा :-
छठ पूजा सूर्य उपासना का महापर्व है, जिसमें डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह महापर्व 31 अक्टूबर से 3 नवंबर तक मनाया जाएगा। छठ में मूर्ति पूजा नहीं की जाती है। छठ पूजा में सूर्य भगवान (भास्कर) को अर्ध्य दिया जाता है। छठ पूजा में सूर्य भगवान को समर्पित गीतों का विशेष महत्व होता है। इस त्योहार में छठी मइया के गीत (भोजपुरी और हिंदी) सुनना शुभ होता है।
छठ पूजा की तिथि :-
31 अक्टूबर: नहाय-खाय
1 नवंबर: खरना
2 नवंबर: संध्या सूर्य अर्घ्य
3 नवंबर: प्रात: सूर्य अर्ध्य और पारण
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छठ पूजा के दिन सूर्योदय- सुबह 6 बजकर 33 मिनट
छठ पूजा के दिन सूर्यास्त- शाम 5 बजकर 35 मिनट
छठ पूजा में जरूरत आने वाले कुछ प्रमुख सामान निम्न है:-बांस की दो तीन बड़ी टोकरी (दउरा)
बांस या पीतल के बने सूप (कलसूप)
लोटा पीतल (फूलहा), थाली पीतल, ग्लास पीतल
नए वस्त्र- साड़ी, धोती, चादर दउरा बांधन हेतु, चावल साठी का, लाल सिंदूर, धूप, दीपक, कलश, ढक्क्न, मिटटी के हाथी, दीये,
आम की लकड़ी, मिटटी के चूल्हे
प्रसाद बनाने हेतु --गेंहू का आटा, गुड़, देशी घी, पान का पत्ता, आरती के लिए कपूर, सुपारी (कसैली)
प्रसाद हेतु फल --पानी वाला नारियल, सेव, केला, संतरा, पत्ते वाले गन्ने, बेरा सेरुखी, सुथनी,शकरकंदी, नींबू, बड़ा नींबू (गागल),
सिघाड़ा, शरीफा, अनानास, लौकी, बोड़ो , पत्ते वाले हल्दी एवं अदरक, चना, अरता का पत्ता आदि।
पकवान-- देशी घी की तली पूरियां, ठेकुआ, खजूर आदि।
ये पूजा सामग्री पूर्ण नहीं भी हो सकती है। क्योंकि छठ पर्व में काम आने वाली सामग्री को आप कितनी भी एकग्रता से तैयारी कर
एकत्रित कर लें आपको एक दूसरे व्रती से सहयोग लेना और देना ही पड़ता है।
छठ पर्व में काम आने वाले सामग्रीयों को यदि हम ध्यान से देखें तो पाएंगे कि इसमें समाज के हर वर्ग की जरूरत आपको पड़ेगी। यानि ये पर्व आपको साल में एक बार आवश्य समरसता का पाठ सिखाता है। इसमें हम एक समाज से बांस की टोकड़ी, सूप तो दूसरे वर्ग से मिट्टी के बर्त्तन लेते हैं। वहीं किसान अपने रोपे गए नए फसल धान के साठ दिन का चावल तैयार करता है। गन्ने की फसल लगभग तैयार हो जाती है। अत: गन्ने भी पत्ते सहित पूजा में उपयोग किया जाता है। वहीं विलुप्त हो चुके सेरुखी, सुथनी व अन्य सब्जियों सिर्फ अब छठ पर्व के लिए ही उगाई जाती है और हमारी आने वाली पीढ़ी आज भी दन विलुप्त सब्जियों से वाकिफ है। गागल का फल (बड़ा नींबू) आज आम प्रचलन से बाहर है , परन्तु छठ पूजा में हर घर में आवश्यक है।
दूसरी ओर जब हम छठ पूजा हेतु संध्या अर्ध्य और प्रात: अर्ध्य के लिए नदी किनारे जाते हैं तो ऐसे उपेक्षित पड़े जगहों की सफाई करते या कराते हैं। जो सामग्री ले जाना होता है जो कि या तो सर पर रखकर या काहार (जो शदियों में डोली ले जाते थे ) ले जाता है। कहार पूजन सामग्री को बहंगी में ले जाता है जिसमें एक डंडा होता है जिसके आगे और पीछे दो रस्सी बंधा होता है और पूजा सामग्री से भरा दउरा (टोकरी) दोनों ओर रखा जाता है। इस प्रकार छठ पर्व में प्राचीन काल से विभिन्न पूजा सामग्रीयों एवं सेवाओं के उपलब्ध कराकर हर वर्ग के लोग धन अर्जित करते हैं और समाज में उनकी उपस्थिति महत्वपूर्ण बनी रहती है। छोटे बड़े सभी किसान अनाज एवं सब्जी आपूर्ति कर, विशेष वर्ग द्वारा बांस का दउरा, सूप या डलिया, कुम्हार मिट्टी के दिये, बत्तर्न इत्यादि सभी धन उपार्जित करते हैं और हमारा सामाजिक अन्योनाश्रय कारणों से छठ पर्व महान पर्व है।
छठ पर्व की पूजा विधि (संक्षिप्त ) :-
छठ पर्व की पूजा विधि को कलमबद्ध करना आसान नहीं है फिर भी एक कोशिश के तहत प्रस्तुत है। छठ पर्व दिवाली के छठे दिन होता है अर्थात कार्तिक (अश्विन ) माह के छठे दिन। कार्ति माह के चौथे दिन नहाए-खाए होता है। इस दिन व्रती (महिलाएं या पुरुष) विधिपूर्वक स्नान ध्यान कर देशी घी में बने (बिना लहसून प्याज के ) भोजन करते हैं। दिन में चावल, दाल और लौकी की सब्जी खाते हैं एवं रात्रि में गेंहू की रोटी और लौकी की सब्जी खाते हैं। दूसरे दिन सूर्योदय के साथ ही व्रत शुरू हो जाता है और व्रती इसी दिन व्रत में काम आने वाली वस्तुओं की तैयारी करते हैं। पूजा में काम आने वाले आटे हेतु गेहूं धोया जाता है, सुखाया जाता है। फिर शाम में इसे साफ सूथरे आटा चक्की में पिसाया जाता है। इस दिन आटा चक्की वाले भी अपनी आटा चक्की को धोकर साफ करते हैं और रोजमर्रा वाले कार्य आटा चक्की में नहीं होता सिर्फ व्रत वाला गेहूं ही पिसा जाता है। पुन: शाम में व्रती व्यक्ति ही पूजा हुतु प्रसाद बनाता है जिसमें रसीयाव (बिना दूध का खीर, 60 दिन के धान से निकले चावल का गुड़ में) और देशी घी लगे रोती और फल आदि होते हैं। इसके बाद पूजा होता है फिर व्रती प्रसाद खाते हैं और बाकी घर के सदस्य एवं आस पड़ोस के मित्रगण भी प्रसाद खाते हैं। इसी दिन व्रती जमीन पर ही सोते हैं। तीसरे दिन सुबह से ही घर के सभी सदस्य अपने अपने कार्यों में लग जाते हैं। कोई छठ घाट पर साफ सफाई के लिए जाता है, कोई गन्ना लेने जाता है तो कोई फल मूल सामग्री खरीददारी करने जाता है। घर की महिलाएं सुबह से ही प्रसाद (ठेकुआ, खजुर, पुड़ी) बनाने में लग जाती है। घर का पूरा महौल त्योहारमय हो जाता है और देखते ही देखते छठ घाट जाने का समय हो जाता है। घर के सभी सदस्य एक साथ छठ घाट को जाते हैं और डूबते सूर्य को नदी में खड़े होकर सभी अर्ध्य देते हैं। रात्रि में भी पूजा होती है। चौथे दिन सूर्योदय के समय सभी सदस्य दोबारा उगते सूर्य को अर्ध्य देते हैं और एक दूसरे को प्रसाद बांट कर छठ पर्व को संपूर्ण करते हैं। ये पूरी पूजा विधि चार दिनों की होती है जिसे व्याख्या करना संभव नहीं है। हर व्यक्ति को जीवन में कम से कम एक बार पर्व को नजदिक से देखना व समझना चाहिए और इसमें निहित असीम शक्ति को महसूस करनी चाहिए।
सूर्य उपासना का महापर्व है छठ पूजा :-
छठ पूजा सूर्य उपासना का महापर्व है, जिसमें डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह महापर्व 31 अक्टूबर से 3 नवंबर तक मनाया जाएगा। छठ में मूर्ति पूजा नहीं की जाती है। छठ पूजा में सूर्य भगवान (भास्कर) को अर्ध्य दिया जाता है। छठ पूजा में सूर्य भगवान को समर्पित गीतों का विशेष महत्व होता है। इस त्योहार में छठी मइया के गीत (भोजपुरी और हिंदी) सुनना शुभ होता है।
छठ पूजा की तिथि :-
31 अक्टूबर: नहाय-खाय
1 नवंबर: खरना
2 नवंबर: संध्या सूर्य अर्घ्य
3 नवंबर: प्रात: सूर्य अर्ध्य और पारण
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छठ पूजा के दिन सूर्योदय- सुबह 6 बजकर 33 मिनट
छठ पूजा के दिन सूर्यास्त- शाम 5 बजकर 35 मिनट
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