शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकता है
इसलिए जिदंगी की हर कदम पर नजर रखो
तो फिर देखो जिदंगी शोहरत के साथ होगा
न कि शोहरत तमाशा बनकर जिदंगी के साथ।।
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकता है
इसलिए जिदंगी की हर कदम पर नजर रखो
तो फिर देखो जिदंगी शोहरत के साथ होगा
न कि शोहरत तमाशा बनकर जिदंगी के साथ।।
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