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जब जब होता है.....



जब जब होता है दंगा
आदमी हो जाता है नंगा
धर्म और मजहब का नाम
व्यर्थ में होता है बदनाम
आंखों से बरसने लगती है घृणा की धारा
पड़ोसी को बंदी कर लेती है उन्माद की धारा
पड़ोसी जन सड़कों पर सिसकता है
आदमी पर आदमी का विश्वास
चोरों की तरह तरह खिसकता है

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