चित्रकोट फॉल्स (चित्रकोट जलप्रपात)
खूबसूरत राज्य छत्तीसगढ़ के जगदलपुर से 39 किमी दूर इंद्रावती नदी पर चित्रकोट जलप्रपात बनता है। अपने घोड़े की नाल समान मुख के कारण इस जल प्रपात को भारत का निआग्रा भी कहा जाता है। दुनियाभर से इस चित्रकोट को देखने के लिए लाखों पर्यटक आते हैं। बरसात के मौसम में मिट्टी के कटाव के कारण भूरे रंग के छाया में आश्चर्यजनक सुंदर लगता है, जबकि गर्मियों में झरना क्रिस्टल रंग में स्पष्ट दिखाई देता है। चित्रकोट जलप्रपात का मनोरम दृश्य भव्य और शानदार है।
इंद्रावती नेशनल पार्क
इंद्रावती नेशनल पार्क छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय और सबसे मुख्य वन्यजीव उद्यानों में से एक माना जाता है। 1983 में इस पार्क को टाइगर रिजर्व के रूप में घोषित किया है और जल्द ही भारत के सबसे मशहूर बाघ अभयारण्यों में से एक बन गया। अभयारण्य में तेंदुए, बंगाल टाइगर, स्लॉथ बीयर, जंगली कुत्ता, चार सींग वाले मृग, धारीदार हाइना और कई विलुप्त प्रजातियों के जानवर रहते हैं।
भोरमदेव मंदिर
छत्तीसगढ़ के कवर्धा शहर में स्थित भोरमदेव मंदिर एक प्राचीन मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। भोरमदेव मंदिर को नाग राजवंश के राजा रामचंद्र लगभग 7 से 11 वीं शताब्दी तक की अवधि में बनाया गया था। भोरमदेव मंदिर में खजुराहो मंदिर की झलक दिखाई देती है, इसलिए इस मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है। भोरमदेव मंदिर पर नृत्य की आकर्षक भाव भंगिमाएं के साथ-साथ हाथी, घोड़े, भगवान गणेश एवं नटराज की मूर्तियां चंदेल शैली में उकेरी गई हैं। भोरमदेव महोत्सव में हजारों की संख्या में श्रद्धालु और पयर्टक इकट्ठा होते हैं। ऐतिहासिक, धार्मिक और पुरातात्विक महत्व को स्थानीय कलाकार की अपनी प्रतिभा के जरिए लोगों को साझा करते हैं।
कांकेर
छत्तीसगढ़ के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित कांकेर जिले में कई रमणीय पर्यटक स्थल है। कांकेर पैलेस, झरना, जंगल, विभिन्न प्रकार के लकड़ी, गडिय़ा पर्वत और लकड़ी आदि के आकर्षणों के कारण कांकेर की ओर पर्यटक तेजी से उभर रहा है। सुंदर आदिवासी गांवों की संस्कृति और लकड़ी के नक्काशी वाले हस्तशिल्प व बांस की वस्तुओं की कलाकृतियां कांकेर की पहचान है। 12 वीं सदी में कांकेर पैलेस में शाही परिवार से रहते थे। महल के कुछ हिस्सों को एक होटल में तब्दील कर दिया गया है।
कोटमसर गुफा
संभाग मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर कांगेरघाटी राष्ट्रीय उद्यान में कोटमसर गुफा स्थित है। विश्व की सबसे लंबी इस गुफा की लंबाई 4500 मीटर है। चूना पत्थर के घुलने से बनी ये गुफाएं चूनापत्थर के जमने से बनी संरचनाओं के कारण प्रसिद्ध है। पाषाणयुगीन सभ्यता के चिन्ह आज भी यहां मिलते हैं। कोटमसर की गुफा अपने प्रागैतिहासिक अवशेषों, अद्भुत प्राकृतिक संरचनाओं और विस्मयकारी सुंदरता के लिए मशहूर है। कोटमसर गुफा पर्यटकों के लिए नवंबर में खोल दिया जाता है।
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