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बचपन

वह पिपल की छांव, खुली आकाश में हमारा बचपन
वह बलखाती सी हवाएं, अमृत सा धूप
जिस पर कुर्बान थी हमारी बचपन की शरारतें
आज तड़पाती है बचपन की नदानी भरी शरारतें
गर्मी की छुट्टी में गांव जाना
हरियाली की छांव तले रहना
फूलों से घिरी लताएं के बीच महलों में रहना
आसपास फल-फूलों से भरी बगीचों में रंग-बिरंगे तितलियों का आना
और भौंरो का गुनगुनाना
इस कोमल मन में तंरग भर जाता था
ज्येष्ठ की दोपहर में दौड़-दौड़ कर बगीचों में जाना
जिस पर बड़ों का डांट पड़ना
आज तड़पाती है बचपन की नदानी भरी शरारतें
एक अपार शांमिमयी सुबह शाम थी
न साजिश न जज्बातों की टक्कर थी
हर जगह सुनहरी ख्याबों से भरी दुनिया थी
जब पड़ा उग्र का लंगर तब फिजा वही थी
सिर्फ हवाएं की रुख बदली थी
आज तड़पाती है बचपन की नदानी भरी शरारतें
उतर चुका है, फिर भी आकाश में रोशनी है
ढल चुका है बचपन, युवा हो मन में आज भी कही बचपन है
इसलिए आज भी तड़पाती है बचपन की नदानी भरी शरारतें 

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